भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी का रिश्ता केवल सांसारिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और ऊर्जात्मक संबंध माना गया है। जब पत्नी अपने पति के पैर दबाती है, तो यह मात्र सेवा नहीं, बल्कि समर्पण, प्रेम, और संस्कार का प्रतीक है। इसके पीछे गहरी ज्योतिषीय और धार्मिक व्याख्या छिपी है।
चरण सेवा का शास्त्रीय महत्व
भारत की परंपरा में “चरण सेवा” को अत्यंत पवित्र कार्य कहा गया है।
स्कंद पुराण में उल्लेख है –
“चरण सेवा न केवल तन की थकान मिटाती है, बल्कि मन के अहंकार को भी शुद्ध करती है।”
जब कोई व्यक्ति श्रद्धा और प्रेम से किसी के चरण दबाता है, तो वह केवल शरीर की थकान नहीं मिटा रहा होता, बल्कि ऊर्जा का सकारात्मक आदान-प्रदान भी कर रहा होता है।
देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का दिव्य उदाहरण
शास्त्रों में सबसे सुंदर दृष्टांत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का मिलता है।
देवी लक्ष्मी स्वयं धन, सौंदर्य और समृद्धि की अधिष्ठात्री हैं, लेकिन वे हमेशा भगवान विष्णु के चरणों में सेवा करती हुई दिखाई देती हैं।
यह दृश्य कोई दासता नहीं, बल्कि समर्पण और प्रेम की पराकाष्ठा है।
“लक्ष्मीः विष्णु-पदासक्ताः” —
अर्थात् लक्ष्मीजी सदा भगवान विष्णु के चरणों में निवास करती हैं।
इसका तात्पर्य यह है कि जहां सेवा और समर्पण होता है, वहीं स्थायी लक्ष्मी का वास होता है।
इसलिए जब कोई पत्नी प्रेमपूर्वक अपने पति के चरण दबाती है, तो वह लक्ष्मी समान सौभाग्यवती बनती है और घर में धन, शांति और सौभाग्य की वृद्धि होती है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से चरण सेवा का प्रभाव
ज्योतिष के अनुसार, पति-पत्नी एक-दूसरे के भाग्य और ग्रह संतुलन के वाहक होते हैं।
- पत्नी जब प्रेमपूर्वक पति के पैर दबाती है, तो उसके मंगल, सूर्य और शुक्र ग्रह सशक्त होते हैं।
- इससे पति को आर्थिक उन्नति, आत्मबल और सफलता प्राप्त होती है।
- वहीं, पत्नी की चंद्र और शुक्र ग्रहों की शक्ति बढ़ती है, जिससे उसका चेहरा तेजस्वी और मन प्रसन्न रहता है।
इस प्रक्रिया को “ऊर्जा का चक्र” कहा गया है — जहां एक दूसरे की सेवा के माध्यम से दोनों की जीवन-ऊर्जा संतुलित होती है।
अन्य शास्त्रीय दृष्टांत
- गरुड़ पुराण में उल्लेख है — “जहां स्त्री पति की सेवा करती है, वहां देवता स्वयं प्रसन्न रहते हैं।”
- महाभारत (अनुशासन पर्व) में कहा गया है — “पति की सेवा स्त्री का धर्म, कर्म और सौभाग्य तीनों है।”
- मनुस्मृति में लिखा है — “जहां स्त्री अपने पति का आदर करती है, वहां सदा देवता निवास करते हैं।”
- विष्णु पुराण में देवी लक्ष्मी स्वयं कहती हैं — “मैं वहीं निवास करती हूं जहां श्रद्धा, सेवा और शांति का वास होता है।”
इन सभी शास्त्रों का सार यह है कि पति-पत्नी के बीच प्यार और सेवा का भाव जितना गहरा होगा, उतना ही परिवार में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति बढ़ेगी।
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से
आधुनिक दृष्टिकोण से भी यह कर्म मानसिक सुकून और रिश्ते की मजबूती लाता है।
जब पत्नी अपने पति के पैर दबाती है, तो पति को यह महसूस होता है कि कोई उसे समझता और महत्व देता है। इससे रिश्ते में भरोसा और निकटता बढ़ती है।
यह छोटा सा कदम परिवार के भीतर सकारात्मक माहौल और भावनात्मक संतुलन पैदा करता है।
क्या यह अनिवार्य है?
नहीं। यह कर्म तभी फलदायी है जब यह प्रेम, श्रद्धा और स्वेच्छा से किया जाए।
यदि यह दबाव या दिखावे के लिए किया जाए, तो इसका कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता।
सच्चे अर्थों में “चरण सेवा” तभी पवित्र है जब उसमें समर्पण और स्नेह झलकता हो।
क्या पति को अपनी पत्नी के पैर दबाने चाहिए?

निष्कर्ष
जब पत्नी अपने पति के पैर दबाती है, तो यह केवल शरीर की थकान मिटाने का कार्य नहीं —
बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है।
जैसे लक्ष्मीजी भगवान विष्णु के चरणों में सेवा करती हैं, वैसे ही पत्नी का यह प्रेमपूर्ण व्यवहार घर में शांति, सौभाग्य और स्थायी समृद्धि लाता है।
इसलिए इसे छोटा कर्म न समझें —
यह वह पवित्र परंपरा है जो रिश्ते में प्रेम, ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करती है।